मुहम्मद अलामुल्लाह
खाने-पीने का सामान खत्म हो गया था।
करीब वाले एटीएम में पैसे नहीं थे।
भूख बहुत तेज़ लगी थी।
कल ही सोचा था कार्यालय में किसी से ऋण ले लूँगा, लेकिन किसी से मांगने की हिम्मत ही नहीं हुई।
अनुकूलन दिनचर्या नाईट शिफ्ट कर के सुबह लौटा तो नींद इतनी तेज आ रही थी कि बस आते ही सो गया .शाम छह बजे आंख खुली तो पास के एटीएम में पैसे निकालने के लिए गया, लेकिन संयोग से आज भी वहां पैसे नहीं थे, बड़ा गुस्सा आया ।
कमरे में वापस आकर रात का इंतजार करने लगा कि अब कार्यालय के कैंटीन में ही खा लेंगे, कैंटीन में कार्ड प्रणाली है और कार्ड में काफी पैसे पड़े हैं, लेकिन ग्यारह बजे रात तक इंतजार करना बहुत मुश्किल था, भूख की तीव्रता और भी बढ़ रही थी, खुद को कोसने लगा कि पानी न पीता तो नफिल रोज़ा ही रख लेता, बेचैनी से, जेब, पर्स, बैग सभी टटोला मगर न तो पैसे मिले और न ही कुछ खाने का सामान, दिल बहलाने के लिए विष्णु प्रभाकर की किताब आवारा मसीहा लेकर बैठ गया, लेकिन जब पेट में कुछ न हो तो अध्ययन में कहाँ जी लगता है।
अचानक ख्याल आया घर में जब छोटी बहन कपड़े धुलती थी तो अक्सर शाम को पैसे लौटाने हुई कहती भैया ये लीजिए! आपके जेब में पड़ा था, और मैं प्यार से कहता तुम रख लो तो वह कितनी खुश होती थी। मैं सोचने लगा कुछ ऐसे ही चमत्कार हो जाता।
यह सोचते हुए मैं अपने उतारे हुए कपड़े जिसे कई सप्ताह से धुलने की सोच रहा था, टटोलना शुरू कर दया ,एक , दो , तीन सभी देख डाले। ना उम्मीदि के साथ एक पुरानी जींस में हाथ डाला काफी दिनों से उसे पहना भी नहीं था ! क्या देखता हूँ पिछली वाली जेब में सौ रुपए पडा है, उस सौ रुपये के नोट को पाकर मुझे इतनी ख़ुशी हुई के उसे बयान नहीं कर सकता सही बात तो यह है की पूरे महीने के वेतन पाकर भी इतनी खुशी कभी नहीं हुई, फरते जज़्बात से मैं ने उस नोट को माथे से लगाया और चूम लिया। फिर दो रकअत शुक्राना नमाज़ पढ़ी,बाहर निकला जूस पिया, समोसे खाए, चाय पी और फिर रूम वापस आ गया।
रहे नाम बाकी अल्लाह का !
1 تبصرہ جات:
یہ تحریر کہیں فارسی خط میں بھی ہے؟ ربط فراہم کیجئے گا۔ نوازش۔
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